सत्पथ एक कोशिश है परिवार, समाज और विश्व को बेहतर बनाने के लिए, बालकों को संस्कारित करने के लिए, युवाओं एवं प्रौढ़ों को स्वाध्याय का वातावरण प्रदान करने के लिये और जीवन के अंतिम पड़ाव को सल्लेखना के शांत जल से सराबोर करने के लिये…। सत्पथ का आधार है अहिंसा एवं अनेकांत जिसका विस्तार बहुत है; पर सरल और संक्षिप्त सोपान निम्न हैं-
मद्य, मांस, मधु एवं पांच उदम्बर फलों का त्याग, अभक्ष्य भक्षण का त्याग, रात्रिभोजन का त्याग…
मैत्री, प्रमोद, करूणा, माध्यस्थ, साधर्मी वात्सल्य।
वांचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय, धर्मोपदेश।
समता भाव पूर्वक देह परिवर्तन।
हर वो गतिविधि जो मानव जाति के साथ-साथ प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी हो जैसे – व्यसन मुक्त समाज का निर्माण, अंधविश्वास का निर्मूलन, सत्साहित्य प्रचार, सत्पथ श्रुत विद्यालय, सल्लेखना ट्रेनिंग सेंटर, वर्कशॉप ऑन जैनिज्म आदि।
हमारा उद्देश्य है बालक को लौकिक शिक्षा के साथ साथ नैतिक व धार्मिक शिक्षा भी प्राप्त हो ताकि वह समाज में स्वाभिमान पूर्ण जीवन जी सके, आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर हो सके तथा औरों के लिये प्रेरणा बन सके। परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सके।
मेरा शास्त्र के अभ्यास में जो दिन जाता है, वह धन्य है। परमागम के अभ्यास बिना हमारा जो समय जाता है, वह वृथा है। स्वाध्याय के बिना शुभध्यान नहीं होता है। शास्त्र के अभ्यास के बिना संसार, शरीर, भोगों से वैराग्य उत्पन्न नहीं होता है। समस्त व्यवहार की उज्ज्वलता व परमार्थ का विचार आगम के सेवन से ही होता है। इसलिये शास्त्रों के अर्थ का सेवन ही करो, अपनी आत्मा को नित्य ज्ञान दान ही किया करो, अपनी संतान को तथा शिष्यों को ज्ञान दान ही करो यही सर्वोत्कृष्ट दान है ।
- रत्नकरण्डश्रावकाचार पृष्ट२७८
साहित्य समाज का दर्पण कहा जाता है और सत्साहित्य सभ्य समाज के निर्माण का आधार अत: हमारी कोशिश है कि समाज के हर वर्ग के पास सत्साहित्य उपलब्ध रहे। मानवता का आधार अहिंसा, सत्य आदि मूल्यों की प्रेरणा देने वाले साहित्य का प्रचार-प्रसार करना ही हमारा लक्ष्य है। जाति, पंथ, भाषा, प्रान्त आदि के भेदभाव से रहित साहित्य जन-जन तक पहुँचे ऐसी हमारी भावना है।
समय की बचत पूर्वक आधुनिक तकनीकी की प्रयोग करते हुये समाज में व्यसन मुक्त सदाचार युक्त जीवन जीने हेतु विशिष्ट शिविरों का आयोजन करके सभी आयु वर्ग के लोगों को तत्वज्ञान की बारीकियाँ सरलता से समझाना ही हमारा उद्देश्य है।
विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से कला को सृजन का मार्ग प्रशस्त करना भी समाज निर्माण का हिस्सा है।उसमें से चित्रकला एक ऐसी विधा हैं जो हज़ार शब्दों को प्रस्तुत करने में समर्थ हैं। अत: बालकों और युवाओं में नैतिक मूल्यों के विकास में साधक इस गतिविधी से समाज को जागरूक बनाने में सहायता मिलती है।
समय-समय पर देश-विदेश में परिभ्रमण करके भारतीय संस्कृति की अहिंसक विचारधारा से जन-जन को परिचित कराना ही इस गतिविधी का उद्देश्य है।
“जिस पंथ चले भगवंत वही आचरिये”
“जिस पंथ चले भगवंत वही आचरिये”
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