सत्पथ पाठशाला क्यों ?
प्रिय साधर्मी,
वर्तमान समय में भौतिकता की चकाचौंध के कारण नयी पीढ़ी नैतिक/धार्मिक संस्कारों से विमुख हो रही है जिसके जिम्मेदार हम और आप हैं
हमारी शिक्षा के केन्द्र मन्दिर आज प्रदर्शन के स्थल बन गये हैं…पंथ, सम्प्रदाय, जाति आदि के नाम दूरियां बढ़ाने में व्यस्त हैं दूसरी बात हम जितने उत्सुक और समर्पित लौकिक शिक्षा तथा हॉबी क्लास के लिये हैं उतने नैतिक/धार्मिक संस्कारों के लिये नहीं हैं जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने आना शुरू हो गये हैं…
सभ्य कही जाने वाली समाज भी कुरीति और व्यसन की चपेट में आ रही है रात्रिभोजन, अभक्ष्य भक्षण जैसी कुरीति पैर पसार रही है, होटल संस्कृति हावी हो रही है, मदिरा पान फैशन बनता जा रहा है…पुस्तकालय सूने हो रहे हैं, मन्दिरों में युवा नदारद हैं ऐसे परिवेश में पाठशाला का महत्व और अधिक बढ़ जाता है जो संस्कारों की विरासत हजारों सालों से हम तक आयी है हमारी जिम्मेदारी है हम उसे आने वाली पीढ़ी को सौंप कर जाये…
हमारा उद्देश्य है बालक को लौकिक शिक्षा के साथ साथ नैतिक व धार्मिक शिक्षा भी प्राप्त हो ताकि वह समाज में स्वाभिमान पूर्ण जीवन जी सके, अात्मकल्याण के पथ पर अग्रसर हो सके तथा औरों के लिये प्रेरणा बन सके। परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सके।
“जिस पंथ चले भगवंत वही आचरिये”
सत्पथ का एक सत्प्रयास
प्रश्नोत्तर – सत्पथ द्वारा वीर वाटिका में आयोजित वर्कशॉप (पाठशाला) के विषय में प्रश्नोत्तर
👉प्रश्न :- यह किस आयु वर्ग के लिए है ?
उत्तर :- यह सभी आयु वर्ग के लिए है अलग अलग ग्रुप की अलग अलग कक्षाएँ यहां लगेगी ।
👉प्रश्न :- यह कब से कब तक चलेगी ?
उत्तर :- यह प्रति रविवार जुलाई से जनवरी तक (फरवरी मार्च परीक्षा समय) तथा अप्रैल मई के माह में कैम्प इस तरह लगभग पूरे वर्ष चलेगी।
👉प्रश्न :- क्या यह सशुल्क होगी ?
उत्तर :- नहीं यह पूर्ण रूप से निःशुल्क होगी ।
👉प्रश्न :- क्या यातायात सुविधा उपलब्ध की जाएगी ?
उत्तर :- हाँ सभी पंजीकृत बालकों के लिए यह व्यवस्था की जायेगी ।
👉प्रश्न :- जब यह नि:शुल्क है तो यातायात की और अल्पाहार की, किट की पुरस्कारों की व्यवस्था कैसे होगी ?
उत्तर :- पंचमकाल के अंत तक जिनशासन चलना है अतः कोई ना कोई दातार
मिल ही जाते हैं अच्छे कार्य को देख कर बिना मांगे ही देते हैं ।
👉प्रश्न :- वाह ! फिर तो सभी आ जायेंगे तो जगह कम पड़ जायेगी ?
उत्तर :- नहीं सबका इतना पुण्य नहीं है कि जैन दर्शन को गहराई से समझ सकें… कुछ लोग अभागे होते हैं जो पानी में रह कर भी प्यासे रह जाते हैं… स्कूल की शिक्षा पर लाखों खर्च करेंगे पर धार्मिक शिक्षा पर सोचेंगे और हाँ व्हाट्सप,फेसबुक पर रोना रोते रहेंगे नयी पीढ़ी में संस्कार नहीं है अन्य धर्मी या विधर्मी को जीवन साथी बना रहे हैं आदि अनेक प्रश्न करेंगे पर पाठशाला नहीं आयेंगे/भेजेंगे…. ख़ैर 😷
👉 प्रश्न :- ऐसी परिस्थिति में आपको बैचेनी नहीं होती ?
उत्तर :- नहीं…वीतराग के मार्ग पर बैचेनी कैसी…आनंद ही आनंद है । कमजोरी है…धर्मानुराग वश यह कार्य करते हैं यह भी जानते हैं हमारे करने से कुछ नहीं होता सब भवितव्य आधीन है
नोट :- आपके पास कोई इससे संबंधित प्रश्न हों तो अवश्य पूछिये
-सत्पथ 8/4/2018
सत्पथ के बालकों के जीवन निर्माण हेतु सरल सोपान
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